May 17, 2024

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गुरुमाँ राधिकानन्द सरस्वती

प्रसन्न रहने का स्वभाव बनाएं

सोनीपत। सभी लोग दुख से छूटना चाहते हैं और केवल दुख से ही छूटना नहीं चाहते, बल्कि सुख भी प्राप्त करना चाहते हैं। कोई चिंता टेंशन तनाव न रहे, हम सदा सुखी रहें. ऐसी भावना सभी में देखी जाती है। परंतु फिर भी लोग चिंता तनाव या टेंशन में रहते हैं। अपने दुखों को अविद्या हठ अभिमान आदि दोषों के कारण बढ़ाते रहते हैं। सुखी होने का उपाय नहीं जानते। जो कुछ लोग जानते भी हैं, वे उन उपायों का प्रयोग नहीं करते। इसलिए परिणाम यही रहता है, कि अधिकतर लोग जीवनभर दुखी ही रहते हैं। तो दुख से छूटने का उपाय इस प्रकार से है। सही सोचना सीखें। सही सोचना बहुत बड़ी कला है, जिससे व्यक्ति दुखों से छूट कर सदा प्रसन्न रह सकता है। सही सोचने का तात्पर्य यह है कि दुख आने से पहले विचार करें, कहां से कौन सा दुख आ सकता है? उसको रोकने के उपाय पहले से तैयार करें। उन उपायों की सहायता से आप दुखों को दूर कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए — जैसे किसी को सिर दर्द की शिकायत रहती है, तो वह सिर दर्द की दवा पहले से अपने पास सुरक्षित रखे। ऐसे कारणों को ढूंढे, जिनसे सिर दर्द का रोग उत्पन्न होता है। उस रोग उत्पादक कारण से बचने का प्रयत्न करे,अथवा धूप में टोपी आदि पहनने से यदि सिर दर्द न होता हो, तो धूप में जाने से पहले टोपी अपने साथ लेकर के जाए, और पहने। इस प्रकार से उपाय करने और पहले से सावधान रहने से, तथा मानसिक प्रसन्नता बनाए रखने से, व्यक्ति बहुत बड़ी सीमा तक इन दुखों से बच सकता है। यह है सही सोचने का तरीका। परंतु जो लोग गलत तरीके से सोचते हैं, उनके दुख दूर नहीं हो पाते। वे लोग ऐसा सोचते हैं, जब हमारी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी, तभी हम सुखी हो पाएंगे। इस चिंतन शैली से व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता क्योंकि जीवन भर सारी समस्याएं उसकी दूर हो नहीं पाती और वह व्यक्ति सुखी भी नहीं हो पाता तो ऐसा सोचें, कि हम प्रसन्न रहेंगे। आने वाले दुखों का उपाय पहले से तैयार करेंगे। चिंता नहीं करेंगे और सदा आनंदित रहेंगे. यही दुखों से बचने और सदा प्रसन्न रहने का सही उपाय है।