May 17, 2024

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ब्याज सहित लौटाती है प्रकृति

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस 28 जुलाई 2020

28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है भारत वासियों ने इस कोरोना काल में 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 के प्रथम लॉकडाउन में प्रकृति पर्यावरण का जो दर्शन किया। शायद वर्तमान पीढ़ी के लिए जीवन का यह पहला सुखद क्षण था जब पर्यावरण का प्रदूषण रहित आभास वर्तमान पीढ़ी को हुआ। कोरोना की आपदा से कराहते हुए वर्तमान पीढ़ी खुशनुमा वातावरण से अपने को आह्लादित अनुभव कर रही थी ।

ब्याज सहित प्रकृति इसलिए वापस करती है। क्योंकि इसकी संरचना इस प्रकार की है कि आप पर्यावरण को दूषित करोगे तो मनुष्य की आने वाली पीढ़ियों को प्रदूषण प्राप्त होगा और प्रकृति अर्थात पर्वतों, वृक्षों नदियों झीलों ,भूगर्भ जल का संरक्षण करोगे तो स्वयं तो शुद्ध वातावरण पर्यावरण को प्राप्त करोगे ही आने वाली पीढ़ियां स्वच्छता और शुद्धता के साथ स्वस्थ जीवन का आनंद लेंगी।

भारतीय सनातन संस्कृति प्रकृति संरक्षण वादी संस्कृति है। इसमें मनुष्य को ऋषियो ने धर्म के साथ जोड़कर प्रकृति संरक्षण सुनिश्चित किया। वही मानव और प्रकृति का संतुलन हजारों लाखों वर्ष से चला आ रहा है।

हमारी आवश्यकताओं की बढ़ती मनोवृति ने आज हमें इतना अंधा कर दिया है कि हमें पर्वतों का कटान करना, नदियों को गंदा करना, वृक्षों का कांटा जाना, भूगर्भ जल का अत्यधिक अनावश्यक दोहन कर दुरुपयोग करना क्या हमें सभ्य और बुद्धिमान बनाता है। जिन पर्वतों का कटान हो रहा है वह हवा के दबाव को सहन करते हैं। और हमें तूफानों से बचाते हैं। जिन नदियों को गंदा किया जा रहा है वह मनुष्य सहित सभी जीवो को जीवन देती हैं। वृक्षों को काट तो दिया जाता है परंतु पौधों का संरक्षण कर पेड़ बनाने का कार्य करने वाले लोग उंगलियों पर गिनने लायक ही हैं।

बात भूगर्भ जल की करें तो हमने विज्ञान को प्रगतिशील बनाकर इतने घाव ट्यूबवेल और समरसेबल से पृथ्वी के शरीर में किए हैं कि आज पृथ्वी भी स्वार्थी मानव के कार्यों से कराह उठी है। कुछ लोग तो गंदे पानी तक को बोरिंग में वापस छोड़ रहे हैं यह आधुनिकीकरण है या फिर आंखें होते हुए भी हमारा अंधानुकरण है।

कि हम आने वाली अपनी पीढ़ियों को प्रदूषण का ऐसा जहर निर्मित कर रहे हैं जो कोरोना से भी कई गुना भयंकर होगा। जो गुटखा खाकर दीवारों को गंदा करना नहीं जानता उसे मूर्ख समझा जाता है। जो कचरा सड़क पर और नालियों में नहीं फेंकता वह मूर्ख माना जाता है। आज प्रकृति के इन दुश्मनों को जेंटलमैन की संज्ञा दी जाती है। आज जागरूकता की जरूरत है।अपने लिए न सही आने वाली पीढ़ियों के लिए तो जागो और भारतीय ऋषियों की संस्कृति को दोहराने की आवश्यकता है।

:-अजय कुमार अग्रवाल
समाज चिंतक, स्वतंत्र पत्रकार