June 15, 2024

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उत्तर भारत का ऑपेरा है भगत-संगीत नौटंकी : डॉ. खेमचन्द यदुवंशी

उत्तर प्रदेश सरकार की संगीत नाट्य अकादमी द्वारा ब्रज की नौटंकी पर आयोजित वेबीनार में मौजूद अकादमी की अध्यक्ष डॉ पूर्णिमा पांडे और मथुरा के लोक नाट्य भूषण डा.खेम चंद्र यदुवंशी
  • ब्रज की नौटंकी पर उ.प्र.संगीत नाटक अकादमी ने कराया वेबिनार।
  • 7वीं शताब्दी के मध्यकाल में मन्दिरों से भगत-सांगीत के रूप में हुई इसकी शुरुआत।
  • मथुरा-वृंदावन और आगरा के परम्परागत अखाडों में आज भी वैभवशाली स्वरूप में कराए जाते हैं भगत-सांगीत के मंचन।
  • आज भी विश्वस्तर पर विशिष्ट पहचान रखती है ब्रज की नौटँकी।
  • वर्तमान में नौटँकी के लिये है समसामयिक विषयों पर आधारित कथानकों की है आवश्यकता।
  • इसके सङ्गीत के संरक्षण हेतु नोटेशन बेहद जरूरी है।
  • नौटँकी के 2-4 छन्दों के समावेश से आधुनिक नाटकों को नौटँकी नहीं कहा जा

मथुरा। उत्तर प्रदेश शासन के संस्कृति मंत्रालय और उ.प्र. सङ्गीत नाटक अकादमी लखनऊ द्वारा आयोजित ‘नौटँकी कल,आज और कल’ विषयक राष्ट्रीय वेबिनार में प्रदेश के राज्यपाल द्वारा सङ्गीत नाटक अकादमी सम्मान से पुरस्कृत लोकनाट्य विशेषज्ञ और केन्द्रीय विद्यालय संगठन के पूर्वप्रचार्य डॉ. खेमचन्द यदुवँशी ने लखनऊ स्थित सङ्गीत नाटक अकादमी के स्टुडियो से मुख्यवक्ता के रूप में ब्रज के भगत-सांगीत नौटँकी का प्रतिनिधित्व करते हुए इसे उत्तर भारत का ऑपेरा शैली में निबद्ध प्रतिनिधि लोकनाट्य बताया है। उन्होंने नौटँकी को उसके जनक ‘भगत-सांगीत’ से जोड़कर सातवीं शताब्दी के मध्यकाल में ब्रज के मंदिरों में श्रीमद्भागवत के संस्कृत छन्द- ‘उपेन्द्रवज्रा’ (शिकस्त) और ‘श्रग्विणी’ (बहर-ए-तबील) आदि स्तुति श्लोकों पर आधारित लोकनाट्य के रूप में उदय बताते हुए कहा – ” प्रदेश की लोकनाट्य विधा ‘नौटँकी’ आज भी विश्वस्तर की पहचान रखती है जिसके जनक ‘भगत-सांगीत’ का उल्लेख ‘आईने-अकबरी’ और ‘नौरंगे-इश्क’ आदि 16वी शताब्दी में लिखे ग्रन्थों में भी मिलता है, इसके स्वांग-सपेड़ा शैली में निबद्ध स्वरूप के आगरा में सन 1827 से पल्लवित होने के भी प्रमाण मौजूद हैं। पण्डित नथाराम गौड़ ने 1894 में परम्परागत अखाडों से इसे जनजन तक पहुंचाया व कानपुर के बंदी खलीफा ने कानपुर में नौ झीलों का प्रयोग ‘नौटँकी शहजादी’ नामक प्रस्तुति में करके इसे नौटँकी नाम दिया। यह विधा आज भी अपने आप में अद्भुत विशिष्टताएं रखती है । समय के साथ इसमें आई अश्लीलता और आधुनिक मनोरंजन के साधनों ने इसे विलुप्ति की कगार पर खड़ा कर दिया है किन्तु उचित संरक्षण और इसमें आई विसंगतियों को दूर करके इसे जीवन्तता प्रदान करना हम सभी का पूर्ण दायित्व है।”
इससे पूर्व वेबिनार का शुभारम्भ करते हुए अकादमी की अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय ने बताया कि “लोकप्रिय होते हुए भी लुप्तप्रायः विधा में नौटँकी का शामिल होना निश्चय ही विचारणीय है और अकादमी इसके उत्थान हेतु सदैव प्रयास करती रही है व करती रहेगी।” अकादमी के सचिव तरुण राज ने स्पष्ट किया- “कोरोना के संकट काल में अकादमी की वेबिनार शृंखला का यह पहला कार्यक्रम है जिसकी आर्काइबल रिकार्डिंग हम अपने अभिलेखागार में संरक्षित कर रहे हैं और इस शृंखला को हम आगे भी जारी रखेंगे।”
तदोपरांत प्रयागराज के युवा निर्देशक अतुल यदुवंशी ने नाटकीयता को नौटंकी की आत्मा बताते हुए कहा कि “इसके पीछे हमारे विद्वानों का सदियों का श्रम और परम्परा रही है तथा इसमें नए प्रयोग और आधुनिकता की परम आवश्यकता है।”

इसी क्रम में वाराणसी के लोककला विद्वान अष्टभुजा मिश्र ने नौटँकी के विलुप्तीकरण की पीड़ा को व्यक्त करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि “महिला कलाकारों के फूहड़ नाच और जोकर द्वारा अश्लीलता ने नौटंकी का सबसे अधिक पतन किया है जिसका स्तर सुधारना अतिआवश्यक है तथा इसका छंद विधान अति विशिष्ट है, इसे संरक्षित और समृद्व रखा जाना बेहद जरूरी है।”
एक ओर जहाँ मुम्बई के रंगकर्मी-लेखक विभांशु वैभव ने नौटंकी को फैशन की तरह इस्तेमाल किये जाने पर एतराज जताते हुए बचपन के अनुभव रखे और कहा कि अपनी लोक कलाओं के संरक्षण से ही हमे नई दृष्टि व जीवंतता मिलेगी वहीं दिल्ली के शीर्षस्थ नौटँकी कालाकर पं.रामदयाल शर्मा ने नौटंकी संवर्धन की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि व्यावसायिक कम्पनियों द्वारा पैसे की चाह में इसमें नाच और अश्लीलता आ गई जिससे सभ्रांत समाज इससे दूर हो गया।
क्रम को आगे बढ़ते हुए लखनऊ के रंगनिर्देशक आतमजीत सिंह ने आधुनिक नौटंकी प्रस्तुतियों का जिक्र करते हुए कहा कि आधुनिक रंगमंच के तत्वों से नौटंकी और नौटंकी के तत्वों से आधुनिक रंगकर्म को बल मिलेगा तथा मुम्बई के नौटँकी लेखक विजय पण्डित ने भी नौटंकी के संरक्षण की जरूरत बताते हुए अभिनव प्रयोगों की चर्चा की। दिल्ली के सुमन कुमार और प्रयागराज के सतीश चित्रवंशी ने भी इस गौरवमयी लोकनाट्य परम्परा पर अपने विचार रखे।
वेबिनार के दौरान नौटंकी के खास वाद्य नक्कारे पर उस्ताद इब्राहिम खां, ढोलक पर अशोक नागर व हारमोनियम पर वासुदेव नागर ने भी नौटंकी छंदों के गायन के साथ साथ आवश्यक स्थलों पर वादन कर चार चाँद लगा दिये।

मुख्य वक्ता डॉ. खेमचन्द यदुवँशी से देश भर से श्रोताओं/दर्शकों के सवाल जवाब का सिलसिला भी चला जिसमें लोककलाविद पूर्व सैन्य अधिकारी डॉ. शांति स्वरूप अग्रवाल(आगरा), डॉ. मुकेश कुमार वर्मा (जयपुर), डॉ. बीरेंद्र कुमार ‘चन्द्रसखी’ (गाजियाबाद), शोधार्थी सोनिका बघेल (आगरा), डॉ. निम्मी गुप्ता (हाथरस), शताक्षी मिश्रा (वर्धा-महाराष्ट्र), अरविंद कुमार (जेएनयू नई दिल्ली), राकेश कुमार पाण्डेय (जमशेदपुर-झारखण्ड), प्रदीप कुमार ( सीपीसी दूरदर्शन- नई दिल्ली), ब्रजवासी रंगमण्डल मथुरा के अध्यक्ष- मुकेश पण्डित, नाट्यभूषण लोकेन्द्र नाथ कौशिक, डॉ. नटवर नागर, वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रताप सिकरवार, नौटँकी कालाकर पण्डित होतीलाल पाण्डेय, प्रकाश सिसोदिया, जगदीश प्रसाद, गया लाल, मनोज कुमार कर्दम, हीरा लाल, बबलू सिंह, बाँके बिहारी शर्मा, प्रबंधक- प्रफुल्ल कुमार श्रीवास्तव, दीपक गोस्वामी आदि ने इस विधा के उत्थान हेतु प्रश्न किये।
वेबिनार में सुप्रसिद्ध नाट्य सर्वेक्षक शैलजाकांत पाठक, छायानट के संपादक राजवीर रतन, अकादमी के अनिल यादव, प्रशांत यादव श्रीमती शमरीन, श्रीमती शैलजा आदि भी उपस्थित रहे।
संचालन लोकगायिका श्रीमती मीता पंत ने किया।