May 17, 2024

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‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे मिले हम बरसात में’…..

मथुरा में पले, बड़े और पढ़े शैलेंद्र इस गीत को लिखने के बाद ही फिल्म जगत में छाए थे

मथुरा में पढ़े और बड़े हुए महान गीतकार शैलेंद्र मथुरा छोड़ कर मुंबई में रेलवे में फिटर की नौकरी करने लगे थे। एक दिन मुंबई में एक कवि सम्मेलन हुआ। वह गरीब थे। उनकी कमीजों पर बैंल्डिंग करने से छेद भी हो गये थे। मंचस्थ कवियों ने युवा शंकर (शैलेन्द्र नाम बाद में पड़ा) को मंच पर बुलाया और कविता पढ़ने को कहा। शैलेंद्र ने उस वक्त ‘जलता पंजाब’ नामक कविता पढ़ी। उस कविता में पाकिस्तान- भारत विभाजन के बाद पंजाब आए लोगों की दर्दनाक व्यथा को मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किया था।
उस कविता पर अन्य कवियों से कहीं ज्यादा श्रोताओं की दाद मिली। कवि सम्मेलन में युवा राज कपूर भी अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ मौजूद थे और कवि सम्मेलन का आनंद उठा रहे थे। इन दोनों पिता-पुत्र को भी शैलेंद्र की ‘जलता हुआ पंजाब’ कविता बहुत सुंदर लगी। दरअसल वह कविता थी जरूर लेकिन एक गीत के रूप में थी।।
कवि सम्मेलन खत्म होने के बाद राज कपूर ने शैलेंद्र से परिचय पूछा। शैलेंद्र ने बताया कि ‘मैं यहां मलाड में रेलवे में फिटर हूं। मथुरा का रहने वाला हूं। यहां रेलवे यार्ड के एक टिन शेड में अकेला रहता हूं। गीत लिखने और गाने का शौक है’। इस पर राज कपूर ने कहा कि-‘ तुम मुझसे मिलो, मैं फिल्मों में तुम्हारे बनाए हुए गीत लूंगा’ और नये गीत भी लिखवाऊंगा’।
राज कपूर की इस पेशकश पर शैलेंद्र तपाक से बोले- ‘मैे अपने गीत बेचता नहीं हूं’। फिर भी राज कपूर ने कहा- ‘आप सोच लो, मैं आपको आगे बढ़ने का रास्ता बता रहा हूं। यदि आप मेरी इस पेशकश से रजामंद हो तो कभी भी आप मुझसे ऑफिस में आकर मिल लेना’। बात आई-गई हो गई।
फिर एक दिन वक्त ने पलटा खाया। शैलेंद्र की पत्नी के बच्चा होने वाला था। पत्नी के इलाज के लिए 500 रुपये की जरूरत पड़ गई। वह यह रकम राजकपूर से उधार लेने जा पहुंचे।
काफी दिन बाद शैलेंद्र उस कर्ज को लौटाने राजकपूर के पास गये। उस समय घनघोर वर्षा हो रही थी। राज कपूर ने शैलेंद्र से कहा कि-‘यह रुपए आप अपने पास रखो और हमारी फिल्मों के लिए गीत लिखो। यह बात उस वक्त शैलेंद्र मान गए।
जब चलने लगे तो हमउम्र शैलेंद्र से राज कपूर ने कहा- शंकर (उस वक्त का नाम) कोई दो लाइन तो सुनाते जाओ। वहीं खड़े-खड़े शैलेंद्र ने गीत सुना डाला–‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम बरसात में…। राजकपूर ने कहा-आप ये गीत पूरा करो। यह गाना कोरस के रूप में संगीतबद्ध हुआ था।
उस वक्त राज कपूर जो फिल्म बना रहे थे। उसका नाम ही उन्होंने ‘बरसात’ रख दिया। ये गाना फिल्मों का पहला टाइटिल सौंग था। यहीं से शैलेंद्र और राज कपूर की जोड़ी बन गई। जो गीत शैलेंद्र ने राज कपूर के लिए लिखे, उनमें ज्यादातर मुकेश ने गाए थे। शंकर जयकिशन उन गीतों को संगीत देते थे। उस वक्त के शैलेंद्र के लिखे मुकेश के गाए और जयकिशन के संगीतबद्ध किए हजारों गाने गइतने लोकप्रिय हुए कि आज तक लोगों की जुबान पर रहते हैं।
शैलेंद्र मथुरा के धौलीप्याऊ की गली गंगा सिंह में रहते थे। आज की नई पीढ़ी के लोगों को शैलेंद्र के मथुरा में रहने, यहां पढ़ने और तमाम उनके रचनात्मक कार्यों से अवगत कराने में बीएसए कॉलेज के अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष और पत्रकार अशोक बंसल की अहम भूमिका रही है। उन्होंने शैलेंद्र के नाम से एक मार्ग का नामकरण भी करवाया है।
शैलेंद्र के पुत्र दिनेश शंकर से भी मेरी मित्रता है। शैलेंद्र के गीतों के बारे में अक्सर फेसबुक पर भी वह बताते रहते हैं। इति..
:-चंद्रप्रताप सिंह सिकरवार, वरिष्ठ पत्रकार, मथुरा